मानव प्रजाति और वायरस - विशेष आलेख

नोट - प्रस्तुत आलेख लम्बा अवश्य है लेकिन मेरी राय में घरो में रहते हुए आप लोगो के पास पर्याप्त समय होगा | इसे समय देते हुए धैर्य के साथ पूरा पढ़े और स्वस्थ जीवन जिए 
मानव प्रजाति और वायरस - विशेष आलेख 
सुपर कंप्यूटर सा है मानव शरीर 
  इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए लोग एक कम्यूटर सिस्टम को अच्छी तरह से जानते है ,वे जानते है कि एक कंप्यूटर का निर्माण विभिन्न प्रकार के हार्डवेयर से मिलकर होता है  जो कंप्यूटर की विभिन्न क्रियाओ से सम्बंधित होते है | लेकिन वे ये भी जानते है कि ये कंप्यूटर स्वत नहीं चल सकता बल्कि इसके काम करने के लिए कुछ सॉफ्टवेयर कंप्यूटर में इंस्टाल करने पढ़ते है और सबसे अहम् कि इस पूरे सिस्टम को पॉवर देनी पढ़ती है तब ही ये रन कर पाता है | जो सॉफ्टवेयर कंप्यूटर में इंस्टाल किये जाते है उनमे कम से कम एक एंटी वायरस का भी सॉफ्टवेयर होता है जो उस पूरे सिस्टम को बाहरी खतरे से सुरक्षित रखता है | यहाँ इस बात का भी जिक्र करता चलू कि ये सभी सॉफ्टवेयर एक कंप्यूटर प्रोग्राम ही होते है ,और सिस्टम में प्रवेश करने वाला बाहरी वायरस भी एक कंप्यूटर प्रोग्राम ही होता है | ध्यान इस और भी दिलवा दू कि वायरस का अटेक कंप्यूटर की लोकल डिस्क अर्थात सी पार्ट पर ही होता है क्योंकि केवल यही पार्ट इंटरनेट  जरिये बाहरी दुनिया से जुड़ा होता है  ,कंप्यूटर के अन्य भाग केवल उसी स्थिति में प्रभावित होते है जब सी पार्ट से कोई संक्रमित फाइल इन भागो में सेव की जाए | फिर एक बात ये भी है कि वायरस रुपी कोई भी कंप्यूटर प्रोग्राम सिस्टम के किसी सॉफ्टवेयर अथवा हार्डवेयर विशेष को ही प्रभावित करता है फिर धीरे धीरे वो पूरे सिस्टम को अपनी गिरफ्त में ले लेता है | सामान्य परिस्थितियों में कंप्यूटर स्वस्थ रहते हुए अपना फंक्शन जारी रखता है ,स्थिति तब बदलती है जब कोई हानिकारक प्रोग्राम (वायरस ) कंप्यूटर में प्रवेश करने की कोशिश करता है ,यदि कंप्यूटर में समुचित शक्ति वाला एंटी वायरस प्रोग्राम मौजूद है तो वो कंप्यूटर में प्रवेश करने वाली ऐसी सभी संदिग्ध फाइल्स को डिटेक्ट करता है ,आपको वार्निंग देता है और आपसे अनुरोध किया जाता है कि ऐसी फाइल्स को क्वारेंटीन किया जाये ,यदि आप इस सलाह को मान लेते है तो संदिग्ध फाइल को क्वारेंटीन कर दिया जाता है और आपका कंप्यूटर निर्बाध रूप से कार्य करता रहता है | दूसरी स्थिति में जब आप एंटी वायरस की चेतावनी को अनदेखा कर किसी संदिग्ध फाइल को प्रवेश की इजाजत दे देते है तो वो फाइल आपके कंप्यूटर को संक्रमित करना शुरू कर देती है जिससे कंप्यूटर का फंक्शन प्रभावित होना शुरू हो जाता है ,ऐसे में जब आप स्केन करते है तो आपका एंटी वायरस उस संदिग्ध फाइल को पुनः डिटेक्ट करता है ,इस समय यदि आप उस फाइल को क्वारेंटीन या डिलीट कर देते है तो संभावना होती है कि बिना अधिक नुकसान के आपका कंप्यूटर पुनः फंक्शन करने लग जाता है | तीसरी स्थिति वो होती है जिसमे या तो आपके कंप्यूटर में कोई एंटी वायरस नहीं होता ,और यदि होता भी है तो बेहद कमजोर या बेहद पुराना वर्जन होता है जो नए वायरस प्रोग्राम्स को न तो डिटेक्ट कर पाता है और न ही क्वारेंटीन कर पाता है | इस स्थिति में आपके कंप्यूटर का संक्रमित हो जाना लाजिमी है | संक्रमित कम्यूटर बंद हो जाता है फिर आपको कंप्यूटर सुधारने वाले के पास जाना पड़ता है जो पहले कंप्यूटर के सी पार्ट की सफाई करता है और इसे फॉर्मेट करते हुए इसमें नए  सॉफ्टवेयर इंस्टाल करता है ,यदि कोई हार्डवेयर भी संक्रमित हो गया हो तो उसे बदलता है और आपका कंप्यूटर एक नई पारी के लिए तैयार हो जाता है |
                                 क्या आपको नहीं लगता कि कंप्यूटर की फंक्शनिंग और मानव जीवन में शतप्रतिशत समानता है | इस आर्टिकल को लिखे जाने का उद्देश्य भी यही है कि मानव जीवन की फंक्शनिंग पर गहन विचार किया जा सके | ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में मिले रॉक फॉसिल्स के प्रमाणों से ये कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर लगभग 3. 5 बिलियन वर्ष पूर्व जीवन अस्तित्व में आया ,जीवन के लिए जल एक अनिवार्य पदार्थ रहा ,मानव एक जटिल जैविक विकास क्रम से गुजरने के बाद अस्तित्व में आया ,इस जैविक विकास क्रम का उल्लेख यहाँ अपरिहार्य है इसलिए केवल इतना जिक्र करते है कि जैविक विकास क्रम में जीवन के तीन बड़े डोमेन बैक्टीरिया ,अर्चया और युकार्या बने | मानव जिसे मेमल्स समुदाय में रखा जाता है युकार्या डोमेन का सदस्य है | इन तीनो ऑर्गनिज्म में एक बात कॉमन है और वो ये कि इनके जेनेटिक इन्फॉर्मेशन के अध्ययन से ये ज्ञात होता है कि इन सभी का पूर्वज एक ही है अथवा इनके पूर्वज एक समान विशेषताएं रखते थे | सभी मामलो में ये एक जैसी बात है कि जीवन चक्र में जीवन की शुरुवात थर्मोफिलिक अथवा हाइपर थर्मोफिलिक वातावरण में हुयी जिसका आशय ये है कि ये गर्म पानी के वातावरण में रहते थे |
शरीर का सुरक्षा तंत्र करता है एंटी वायरस का कार्य 
प्रकृति ने सृष्टि में जितने भी प्राणी का सृजन किया उनमे उसने ऐसी व्यवस्था भी की कि वो बाहरी आक्रमणों से अपनी सुरक्षा कर सके ,दृश्य खतरों से निपटने के लिए जहाँ उसे विशेष अंग प्रदान किये वही शारीरिक विकार अथवा वायरस जन्य बीमारियों से मुकाबला करने के लिए इम्यून तंत्र के रूप में जन्म से ही ऐसी व्यवस्था विकसित की है जो सेल्स को रोगजनकों की पहचान और प्रतिकिया करती है लेकिन जन्मजात इम्यून सिस्टम हमेशा ही शरीर को जीवन पर्यन्त सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाता | शरीर में दूसरा बचाव तंत्र अडाप्टिव इम्यून सिस्टम होता है जो विशेष प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है जो रोगजनकों की पहचान करने के साथ उनकी वृद्धि को रोककर उन्हें समाप्त करता है |हमारी अंतस्रावी ग्रंथियां इसी सुरक्षा तंत्र का एक और महत्वपूर्ण अंग है जिनसे स्त्रवित होने वाले एंजाइम शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सुचारू बनाये रखने के साथ उन क्रियाओ के लिए भी उत्प्रेरक का कार्य करते है जो शरीर की सुरक्षा प्रणाली द्वारा  संचालित की जाती है | कहने का आशय ये कि प्रकृति ने शरीर में बहुत सशक्त एंटी वायरस डाला हुआ है जो मनुष्य को प्रत्येक दृश्य या अदृश्य खतरे से सुरक्षित रखता है ,चाहे खतरा कोरोना वायरस या इससे भी अधिक खतरनाक क्यों न हो | निश्चित रूप से बच्चो की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम इसलिए होती है क्योंकि उनमे ये सुरक्षा तंत्र विकसित होने के चरण में होता है और बुजुर्गो में ये क्षमता इसलिए कम होती है क्योंकि उनमे नई कोशिकाओं का बनना रुक जाता है जिससे उनका सुरक्षा तंत्र पूर्ण रूप से विकसित होने के बावजूद मेंटिनेंस नहीं होने के कारण अपनी क्षमता खोता जाता है | 
क्या होते है वायरस 
19 वी सदी के आखिरी दशक में वायरस पर अधिक फोकस किया जाने लगा और बाद के वर्षो में वायरस की उत्पत्ति को लेकर तीन मुख्य परिकल्पनाएं रखी गयी | रिडक्शन हाइपोथेसिस ,एस्केप हाइपोथेसिस और को इवोल्यूशन नाम की ये परिकल्पनाओं कुछ मामलो में सही उतरती थी लेकिन कुछ का जवाब इनसे नहीं मिलता था | आधुनिक विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि वायरस उस वक्त से भी पहले पृथ्वी पर मौजूद थे जब जीवो का वर्गीकरण तीन डोमेन में किया गया था | आरएनए सेल्स के जनक विश्व के प्रमाणों ,वायरल के कंप्यूटर विश्लेषणों और होस्ट डीएनए श्रंखलाओ के अध्ययन से विभिन्न वायरस के मध्य सम्बन्धो को समझने में काफी मदद मिली है साथ ही इसे जानने के प्रयास भी किये जाने लगे है कि वर्तमान वायरस के जनक वायरस कोनसे है | अब इसे स्वीकार नहीं किया जा रहा है कि सभी वायरसों का जनक वायरस एक ही था बल्कि ये माना जाने लगा है कि भूतकाल में अलग अलग समय हुयी प्रक्रियाओं से वायरस की उत्पत्ति हुयी | 
            वैज्ञानिको में इस बात को लेकर विभिन्न मत है कि क्या वायरस जीवन का ही एक प्रकार है या कोई ऑर्गनिक स्ट्रक्चर है जो जीवित प्राणियों पर परस्पर प्रभाव डालता है | ये कहा गया कि वायरस एक ऐसा ऑर्गैनिस्म है जो जीवन के प्रारम्भ के साथ ही अस्तित्व में आ गया था | ये अपने ऑर्गैनिस्म को रिसेम्बल कर जीन (डीएनए अथवा आरएनए में मौजूद न्यूक्लिओटाइड्स) प्राप्त कर सकते है और फिर नेचुरल सलेक्शन के सिद्धांत के अनुसार विकसित होते है | ये खुद की कई प्रतिकृतियां तैयार करने में सक्षम होते है | यद्यपि वायरस में जीन होते है लेकिन इनके पास कोई कोशिकीय ढांचा नहीं होता जिसे कि जीवन के लिए अनिवार्य इकाई माना गया है | वायरस में उपापचय (मेटाबॉलिज्म ) की क्रिया नहीं होती जिसके चलते यदि इन्हे कोई नया प्रोडक्ट बनाना है तो उसके लिए इन्हे किसी होस्ट सेल की जरुरत होती है और इसीलिए ये किसी होस्ट सेल के बाहर रिप्रोड्यस नहीं कर सकते | लेकिन किसी कोशिका में वायरस की रिसेम्बलिंग जीवन की शुरुवात को समझने के लिए बेहद उपयोगी है और उस परिकल्पना को मजबूत करती है जिसमे जीवन का प्रारम्भ सेल्फ असेम्बलिंग ऑर्गनिक मॉलिक्यूल्स द्वारा होने की बात कही गयी है |
            एक पूर्ण वायरस पार्टिकल को विरिओन कहा जाता है ,इसमें एक नाभिक होता है जिसके चारो और प्रोटीन की एक सुरक्षा परत होती है जिसे कैप्सिड कहते है ,ये परत वायरस के जेनेटिक मटेरियल को सुरक्षित रखती है | केप्सिड का निर्माण एकसमान प्रोटीन के सब यूनिट से होता है जिन्हे केपसोमर्स कहा जाता है | वायरस अपने होस्ट सेल की मेम्ब्रेन्स (वो चारदीवारी जो कोशिका के अंदर में मटेरियल को सुरक्षित रखती है ) से लिपिड एनवलप ( बायो केमिस्ट्री में लिपिड उन बायो मॉलिक्यूल्स को कहा जाता है जो नॉन पोलर साल्वेंट में भी विलय हो जाते है ) प्राप्त कर सकता है | वायरल जीनोम (वो जेनेटिक मटेरियल जिसमे जीन और नॉन कोडिंग डीएनए और साथ में माइटो कोन्ड्रीयल डीएनए और क्लोरो पास्ट डीएनए होता है ) द्वारा एनकोडेड प्रोटीन द्वारा ही केप्सिड का निर्माण होता है | एक वायरस में डीएनए अथवा आरएनए जीनोम हो सकता है लेकिन बहुतायत में वाइरस आरएनए जीनोम ही रखते है | नोबल प्राइज विजेता डेविड बाल्टीमोर ने मेसेंजर आरएनए (mRNA ) निर्माण की प्रक्रिया के आधार पर वायरस को सात श्रेणियों में वर्गीकृत किया | इस वर्गीकरण के अनुसार कोरोना वाइरस ,पि कोरना वाइरस और टोगा वाइरस को एक ही श्रेणी में रखा गया है | ये (+) ss RNA viruses कहे जाते है जिसका तात्पर्य ये है कि इनके जीनोम में सिंगल आरएनए स्ट्रेंड होती है ,ये रिवर्स ट्रांस्क्रिप्शन का उपयोग नहीं करते और सेंसिबल होते है | 
मानव शरीर को किस तरह करते है प्रभावित    
मनुष्य मल्टी सेलुलर ऑर्गनिज्म की श्रेणी में आता है ,अर्थात ये एक बहुकोशिकीय जीव है | वायरस कई तरीको से किसी जीव को प्रभावित कर सकते है जो उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है | शुरुवात ये किसी कोशिका को नष्ट करने के साथ करते है ,एक बहुकोशिकीय जीव में जब बड़ी संख्या में कोशिकाएं मृत हो जाती है तो जीव इससे प्रभावित होने लगता है ,साथ ही ये मनुष्य के पूरे जीवन तंत्र को डिस्टर्ब करना शुरू करते है जिसके परिणाम स्वरूप मानव विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो जाता है | कई वायरसों में ये भी विशेषता होती है कि ये बिना किसी नुकसान के मानव शरीर में लम्बे समय तक रह सकते है इनमे मुंह के छाले उत्पन्न करने वाला हर्पेक्स सिम्पलेक्स वाइरस ,स्मॉलपॉक्स और शिंगल्स उत्पन्न करने वाला वेरीसेल्ला जोस्टर वाइरस और ग्लैडुलर फीवर उत्पन्न करने वाला एप्सटीन -बर्र वाइरस आदि प्रमुख है | लगभग सभी मनुष्यो को जीवनकाल में इनमे से कम से कम एक वाइरस से संक्रमित होना ही पड़ता है | लेकिन ये वाइरस शरीर के लिए लाभदायक भी होते है क्योंकि ये बैक्टीरियल पैथोजन्स के विरुद्ध मनुष्य के इम्यून सिस्टम की क्षमता को बढ़ाते है | कुछ वाइरस जीवन पर्यन्त क्रोनिक इंफेक्शन बनाये रखते है ,ये वो स्थिति होती है जिसमे मानव के इम्यून सिस्टम की सुरक्षा के प्रयासों के बावजूद वाइरस लगातार अपनी संख्या बढ़ाते रहते है | हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी वाइरस इसके उदाहरण है ,इन वाइरस से संक्रमित लोग इसके कॅरियर का काम करते है क्योंकि इनका शरीर वाइरस का संग्रह स्थल बन जाता है | 
                किसी वायरस में मौजूद जेनेटिक मटेरियल (जीनोम ) तीन तरीको से अपना संक्रमण मानव शरीर में पहुंचाता है | पहला तरीका - डीएनए वाइरस का जीनोम रिप्लीकेशन कोशिका के नाभिक के भीतर होता है लेकिन ये तभी होता है जब उसे कोशिका की सतह पर उपयुक्त रिसेप्टर मिलता है | हर्पिस वाइरस कोशिका में सीधे फ्यूजन द्वारा भी प्रवेश कर जाते है लेकिन अधिकतर वाइरस होस्ट सेल की डीएनए -आरएनए सिंथेसिस मशीनरी और आरएनए प्रोसेसिंग मशीनरी पर निर्भर होते है ,कुछ बड़े वाइरस जीनोम इतनी क्षमता रखते है कि वे खुद ही इस मशीनरी को भेद देते है | दूसरा तरीका - आरएनए वाइरस के जीनोम का रिप्लीकेशन कोशिका के साइटोप्लाज्म (कोशिका में मौजूद पदार्थ ) में होता है ये चार तरीको से हो सकता है | इसमें सिंगल स्ट्रेंड आरएनए वाइरस की पोलेरिटी (वो क्षमता कि क्या राइबोसोम इसका प्रोटीन बनाने में सीधे प्रयोग कर सकता है अथवा नहीं ) रिप्लीकेशन मेकेनिज्म को तय करती है ,ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि जेनेटिक मटेरियल सिंगल स्ट्रेंड है या डबल स्ट्रेंड | सभी आरएनए वाइरस अपने जीनोम की प्रतिकृतियां बनाने में खुद के आरएनए रेप्लिकाज एंजाइम का उपयोग करते है | तीसरा तरीका -ये रिवर्स ट्रांस्क्रिप्शन है ,इस प्रक्रिया का उपयोग करने वाले वाइरस ss RNA तथा ds DNA  वाइरस है | आरएनए जीनोम वाले ऐसे वाइरस अपने रिप्लीकेशन के लिए डीएनए इन्टरमीजियेट्स का प्रयोग करते है और डीएनए जीनोम वाले आरएनए इन्टरमीजियेट्स का | इसमें आरएनए डिपेंडेंट डीएनए पॉलिमरेज एंजाइम द्वारा न्यूक्लिक एसिड को परिवर्तित कर दिया जाता है | रेट्रोवायरस इस एंजाइम को रिप्लीकेशन प्रोसेस शुरू करते हुए प्रोवाइरस के रूप में होस्ट सेल के जीनोम में प्रवेश करवा देते है लेकिन पेरा रेट्रो वाइरस ऐसा नहीं करते | ये एंटी वाइरल ड्रग्स के प्रति अतिसंवेदनशील होते है जो रिवर्स ट्रांस्क्रिप्टेज एंजाइम को रोक देती है | एचआईवी रेट्रो वाइरस और हेपेटाइटिस बी का वाइरस पेरा रेट्रो वाइरस का उदाहरण है | 
वाइरस से बचाव और उपचार 
क्योंकि वाइरस अपने रिप्लीकेशन में मानव कोशिका के मेटाबॉलिज्म पाथवे का प्रयोग करते है इसलिए बिना ड्रग्स का प्रयोग किये इन्हे समाप्त करना संभव नहीं ,ये ड्रग्स भी ऐसी होनी चाहिए जो मानव कोशिकाओं में टॉक्सिक उत्पन्न कर सके | वैसे सबसे बेहतर तरीका वेक्सिनेशन है जो किसी भी वाइरस के विरुद्ध मानव के इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करता है | वेक्सिनेशन वो तरीका है जिसमे वाइरस के संक्रमण से पहले ही शरीर को सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है | पोलियो ,स्मॉलपॉक्स ,रूबेला आदि वाइरस जनित ऐसे संक्रामक रोग है जिन्हे वेक्सीनेशन द्वारा रोक दिया गया | किसी भी वाइरस की वेक्सीन बनाने से पहले वाइरस की पहचान और लक्षणों की जानकारी जरुरी है | वेक्सीन में मृत वाइरस के लाइव अट्ठेनुइटेड या वाइरल प्रोटीन (एंटीजेंस ) होते है ,ऐसी वेक्सीन में वाइरस की सबसे कमजोर फॉर्म होती है जो रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होती ,लेकिन कमजोर इम्युनिटी वाले लोगो को ऐसी वेक्सीन दिए जाने पर संक्रमण का खतरा होता है | दूसरी प्रकार की वेक्सीन बायो टेक्नोलॉजी और जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा तैयार की जाती है ,इन वेक्सीन में केवल वाइरस की केप्सिड प्रोटीन का प्रयोग किया जाता है ,हेपेटाइटिस बी की वेक्सीन इसका उदाहरण है ,ये वेक्सीन  कमजोर इम्युनिटी वाले लोगो को भी नुकसान नहीं पहुंचाती | वाइरस जनित रोगों के उपचार के लिए एंटी वाइरल ड्रग्स का उपयोग किया जाता है ये प्राय न्यूक्लियोसाइड एनालॉग (फेक डीएनए बिल्डिंग ब्लॉक ) होते है | वायरस के जीनोम जब इनके संपर्क में आते है तो उनका जीवन चक्र रूक जाता है क्योंकि फेक डीएनए बिल्डिंग ब्लॉक के सिंथेसिस से जो नया डीएनए बनता है वो अक्रिय होता है और ऐसा इसलिए होता है कि इन ड्रग्स में हाइड्रोक्सिल ग्रुप नहीं होता है | 
             पृथ्वी पर मौजूद जीवन के जितने भी प्रकार है वे वायरस से संक्रमित हो सकते है ,ये बहुकोशिकीय जीवन है जिसमे मानव ,जानवर और वनस्पतियां शामिल है | ये अवश्य है कि प्रत्येक वाइरस अपनी रेंज के अनुसार ही जीवो को संक्रमित करते है | 
बैक्टीरियल वाइरस 
बेक्टीरियोफेजेज विभिन्न वायरस का एक कॉमन ग्रुप है जो जलीय वातावरण में प्रचुर मात्रा में पाए जाते है | समुद्रो में जितने बैक्टीरिया पाए जाते है उनसे कम से कम दस गुना इन वाइरस की संख्या होती है | ये वाइरस कुछ विशेष बैक्टीरिया की सतह पर मौजूद रिसेप्टर मॉलिक्यूल्स से संयुक्त होकर उसकी कोशिका में प्रवेश करते है और उसे संक्रमित कर देते है ,इसके कुछ ही मिनिटों में बैक्टीरियल पॉलिमरीज वाइरल एम आरएनए को प्रोटीन में बदलना शुरू कर देते है जो नए विरिओन का रूप ले लेते है | बैक्टीरिया खुद को बेक्टीरियोफेजेज से बचाने के लिए एक एंजाइम स्त्रवित करते है जो बाहरी डीएनए को नष्ट करता है इसे रेस्ट्रिक्शन एंडो न्युक्लिएसेस कहा जाता है | बैक्टीरिया में एक और सुरक्षा तंत्र होता है जो  क्रिस्पर सिक्वेंसेज का इस्तेमाल कर वाइरस के जीनोम को पृथक करता है जिसके संपर्क में कोशिका पूर्व में आयी होती है | इसके द्वारा वाइरस की आरएनए इंटरफरेंस द्वारा रिप्लीकेशन की क्रिया को ब्लॉक कर दिया जाता है | ये जेनेटिक सिस्टम बैक्टीरिया को वाइरस के प्रति एक्वायर्ड इम्युनिटी प्रदान करता है | 
वाइरस का जैविक हथियार के रूप में प्रयोग 
सैद्धांतिक रूप से सिंथेटिक बायोलॉजी में कुछ इस तरह के बायोलॉजिकल वॉरफेर एजेंट बनाये जा सकते है जो किसी वेक्सीन को अप्रभावी कर सकते है ,जो एन्टिबायोटिक्स और एंटी वाइरल एजेंट्स  काम करने से रोक सकते है ,जो किसी पैथोजेन की तीव्रता को बढ़ा सकते है ,जो किसी पैथोजेन की संक्रमण क्षमता को बढ़ा सकते है ,जो किसी पैथोजेन की होस्ट रेंज को बढ़ा सकते है ,जो डाइग्नोसिस और डिटेक्शन टूल्स से बचने की विशेषता उत्पन्न कर सकते है और जो किसी बायोलॉजिकल एजेंट या टोक्सिन को हथियार के रूप में बदल सकते है | ये दरअसल डीएनए सिंथेसिस की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है जिसमे लेब में लीथल वाइरस के जेनेटिक मटेरियल को तैयार किया जाता है | क्रिस्पर /कास सिस्टम वर्तमान में प्रचलित प्रक्रिया है जिससे जीन एडिटिंग की जा सकती है | 
स्वस्थ जीवन कैसे जिया जा सकता है 
 इस आलेख का सबसे महत्वपूर्ण पैरा यही है क्योंकि सारी मशक्कत और जानकारियां इसलिए एकत्रित की गयी कि हम बीमार होने का कारण जान सके और स्वस्थ रहने के लिए जरुरी  लाइफ स्टाइल ग्रहण कर सके | देखिये प्रथम तो हम ये जान ले कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुवात ही वायरस से हुयी क्योंकि केवल वाइरस में ही वो क्षमता है कि इसका जेनेटिक मटेरियल(जीनोम ) स्वत ही रिप्लीकेट होता है अर्थात अपने डीएनए अथवा आरएनए की प्रतिकृतियां तैयार कर सकता है | पृथ्वी के वायुमंडल में और जल में असंख्य वायरस मौजूद है ,जीवन चक्र के अनुसार एक कोशिकीय जीव को जीवन की प्रथम इकाई माना जाता है | इन जीवित प्राणियों में सबसे समृद्ध अवस्था मनुष्य अर्थात हम है | पृथ्वी पर जीवन का विकास क्रम क्या रहा ये अलग विषय है लेकिन ये जान लेना जरुरी है कि विभिन्न चरणों में विकसित हुयी प्राणियों की प्रजातियों में एक ऐसा तंत्र अवश्य विकसित हुआ जो उस प्राणी को सुरक्षित रखता है जिसे हम इम्युनिटी के नाम से जानते है और ये सिस्टम डीएनए अथवा आरएनए द्वारा ही तैयार किया जाता है | इस इम्यून सिस्टम के दो प्रमुख लड़ाके है एक तो रक्त में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल और दूसरा अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों द्वारा उत्सर्जित एंजाइम | यदि ये सुरक्षा तंत्र मजबूती से काम करता रहे तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी पैथोजेन मनुष्य को प्रभावित या संक्रमित कर सकता है ,क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि जिस प्रकृति में पैथोजेन विकसित हुए है उसी प्रकृति ने मनुष्य के शरीर में भी ऐसे एंटीवायरस विकसित किये है जो इनका मुकाबला कर सकते है | मानव तभी बीमार होता है जब या तो उसके शरीर में मौजूद डीएनए या आरएनए सिंथेसिस से ऐसा प्रोडक्ट उत्पन्न होता है जिसे शरीर का तंत्र निष्प्रभावी करने में असमर्थ होता है और या फिर बाहर से कोई वाइरस कोशिका को संक्रमित कर देता है | हम जानते है मनुष्यो में कई रोग आनुवंशिक होते है जो पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होते है ,जाहिर है ये विकृत जेनेटिक मटेरियल के कारण होता है |                            ये एक स्वीकृत तथ्य है कि जब प्रकृति का निर्माण हुआ तो इसके सभी अवयव संतुलित अवस्था में थे , यदि ऐसा नहीं होता तो जीवन का उद्भव और विकास संभव ही नहीं था  ,लेकिन पर्यावरणीय और जलीय प्रदूषण ने इनमे मौजूद तमाम वायरसों को विकृत किया और वे प्राणियों के लिए घातक सिद्ध होने लगे ,यही स्थिति मानव शरीर में मौजूद वायरसों की है अनियमित जीवनचर्या और असंतुलित भोजन ने या तो उन्हें विकृत कर दिया या क्षमता हीन कर दिया | इसलिए यदि मनुष्य स्वस्थ जीवन चाहता है तो सबसे अहम जरुरत है पृथ्वी के इको और अक्वा सिस्टम को सुरक्षित रखने की | वृक्षारोपण से हम केवल वायुमंडलीय गेसो का संतुलन बनाये रखने का प्रयास कर सकते है लेकिन बहुतायत में हो रही पेड़ो की कटाई ,अंधादुंध खनन जैसी कई गतिविधियां है जिन पर अंकुश की जरुरत है | आवश्यकता आविष्कार की जननी है और स्वार्थ अनैतिकता की ये दोनों ही वे कथन है जो बताते है कि हमने विकास के पथ पर कैसे कदम बढाए और किस प्रकार ये कदम हमारे विनाश की और बढ़ रहे है | क्या मानव की कीमत पर विकास को स्वीकार किया जाना चाहिए ये गहन चिंतन का विषय है | लेकिन हम सब एक शुरुवात कर सकते है और वो है जनसँख्या नियंत्रण की ,क्योंकि वैज्ञानिक संसाधनों ने मृत्यु दर को कम कर दिया है अब यदि हम जन्म दर को कम नहीं करेंगे तो फिर वे तमाम कदम उठाना हमारी मज़बूरी होगी जो प्रकृति की निगाह में अनैतिक है और प्रकृति इस अनैतिकता के लिए हमें दण्डित अवश्य करेगी | 
                                      वैज्ञानिक मृत्यु के सच को जानने का प्रयास करते रहे है ,में नहीं जानता कि वो किस क्षेत्र में इसकी तलाश कर रहे है ,लेकिन मुझे भारतीय दर्शन का एक वाक्य दिशा दिखाता है और वो ये कि मनुष्य के जन्म के साथ ही ये तय हो जाता है कि उसकी मृत्यु कब और कैसे होगी , जाहिर है यदि जीवन की शुरुवात एक वायरस से हुयी है तो मृत्यु का जवाब भी वायरस में ही छिपा है  अब इस जानकारी को देने वाला वायरस मनुष्य कब ढूंढ पायेगा कोई नहीं जानता क्योंकि पृथ्वी पर वायरसों की संख्या मनुष्यो की कुल आबादी की कुछ गुनी नहीं तब भी इनसे अधिक तो है ही | यदि बात कंप्यूटर रुपी मानवी शरीर की करे तो हमें हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाये रखना होगा | व्हाइट ब्लड सेल्स का निर्माण हमारे आहार से जुड़ा हुआ है जो एक संतुलित आहार की जरुरत बताता है | अपना माल बेचने के लिए जो तरह तरह के विज्ञापन कम्पनियाँ जारी करती है आप उन पर मत जाइये और नहीं इसकी गणना करने का प्रयास कीजिये कि किससे कितनी कैलोरी मिल रही है | जिस सीजन में जो भी खाद्य पदार्थ सरलता से उपलब्ध हो उसका सेवन कीजिये ,कोशिश कीजिये कि ये ताजा हो और इसे तैयार करते समय धीमी आंच पर पकाया जाए और जरुरत से ज्यादा नहीं पकाया जाए ताकि उसमे मौजूद जो भी पौष्टिक तत्व है वो नष्ट नहीं हो | आहार से भी अधिक महत्वपूर्ण है आपका मेटाबॉलिज्म ,क्योंकि यदि ये मजबूत नहीं है तो आप कितना ही पौष्टिक आहार क्यों नहीं ग्रहण करे शरीर को उसका कोई लाभ मिलने वाला नहीं है | मेटाबॉलिज्म मजबूत रहे इसके लिए संयमित जीवन चर्या जीने की आदत डाले | ये कोई बड़ा कठिन काम नहीं है ,कोशिश करे कि सूर्योदय से पहले नहीं तो कम से कम सूर्योदय के समय तो उठने की आदत डाले ,उठने के साथ ही पर्याप्त मात्रा में पानी पिए और कुछ समय खुली हवा में घूमे | इसके उपरान्त सूर्य  की किरणों के बीच कम से कम 15 मिनिट तक योगासन और प्राणायाम करे ,योग क्रियाओ के लिए किसी जानकार व्यक्ति से परामर्श लेवे | योग और प्राणायाम या सूर्य को किसी जाति या धर्म से जोड़कर नहीं देखे ,आप चाहे तो चन्द्रमा की चांदनी में भी योगाभ्यास कर सकते है ,लेकिन पूरा चाँद आपको प्रतिदिन तो नहीं मिलेगा जबकि सूर्य का प्रकाश प्रतिदिन उपलब्ध है | योग क्रियाओ के दौरान किसी मन्त्र विशेष का मानसिक  जाप महत्वपूर्ण है | मानसिक जाप से तात्पर्य है कि आप अपने मस्तिष्क में शब्दों को दुहराते है ,स्मरण रखे कि मन ही मन दुहराए जाने वाले शब्द या मन में आने वाले विचार वस्तुत इलेक्ट्रो मेग्नेटिक तरंगे है जो बेशक दिखती नहीं है लेकिन ये वो सशक्त माध्यम है जो प्रकृति को मनुष्य के भौतिक शरीर से जोड़ती है | योग क्रियाओ में शरीर में मौजूद अंतस्रावी ग्रंथियों पर ही दबाव डाला जाता है ,इस दबाव के साथ जब कोई इलेक्ट्रो मेग्नेटिक तरंग ग्रंथि को भेदती है तो यदि ग्रंथि अक्रिय है तो वो सक्रिय होने लगती है और यदि सक्रिय है तो उसकी क्रियाशीलता बढ़ती जाती है ,परिणाम आपका इम्यून सिस्टम बेहतर तरीके से काम करता है | मेरी नजर में शब्द हिन्दू या मुसलमान नहीं होते ये वर्गीकरण तो हमने कर दिया है ,फिर भी यदि किसी को ऐतराज हो तो वो उन्ही शब्दों का इस्तेमाल योग क्रियाओ के दौरान करे जो उसे लगता है कि उसी के धर्म के है लेकिन यहाँ फिर शब्दों के चयन का मामला आता है जिसका समाधान किसी विशेषज्ञ से ही करवाना होगा | कारण भी जान ले ,विचार या मानसिक जाप इलेक्ट्रो मेग्नेटिक तरंगे है ,तरंग है तो उसकी एक विशेष आवृति भी होगी और दरअसल वास्तविक महत्व तो इसी आवृति का ही है | और अंत में इतना कि मन में सकारात्मक विचारो का ही प्रवाह रखे ,आपके नकारात्मक विचार किसी अन्य व्यक्ति को कब और किस तरह नुकसान पहुंचाएगा ये बिलकुल निश्चित नहीं है लेकिन ये तय है कि आपके नकारात्मक विचारो से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा आपके शरीर को तुरंत ही नुकसान पहुँचाना शुरू कर देती है | इसलिए अच्छा और सकारात्मक सोचे ,ये आपके मस्तिष्क को और मजबूत बनाएगा बनाएगा ,और एक दृढ मस्तिष्क वाले मनुष्य का इम्यून सिस्टम अभेद होता है उसे एक कोरोना तो क्या कई कोरोना मिलकर भी नहीं भेद सकते | 
महेंद्र जैन 
14 अप्रैल 2020 
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